Friday, September 12, 2008

राम चंद्र कह गये सिया से ...

कल टीवी पर बम्बई की एक महिला को देखा जो गणपति जी के दर्शन के लिये गई । पुजारी कैसे धक्का-मुक्की कर के उसे मंदिर से बाहर निकाल रहे थे....क्योंकि वह शिल्पा शेट्टी और एकता कपूर जैसे लोगों को दर्शन करवाने में व्यस्त थे। आज कल सभी जगह पैसे की जय जय कार है....कईं जगह पर तो पुजारियों ने तो मंदिर जैसी जगह को भी अपनी स्टेट ही मान रखा है।
मैं अपनी बात बताती हूं...हम लोग साउथ में वैसे ही घूमने फिरने के लिये गये ...वहां एक मंदिर में हम गये तो गेट पर ही पुजारियों के पहरेदारों ने हमें रोक दिया ...कहने लगे इन कपड़ों में आप अंदर नहीं जा सकते। चूंकि हम लोग पंजाबी हैं और पंजाबी सूट पहन रखे थे.....हम ने कहा तो फिर वह कहने लगा कि आप को धोती पहन कर मंदिर के अंदर जाना होगा जो वहां पर 50 रूपये किराये पर मिल रही थी। हम को घर के पांच सदस्यों के लिये 10 मिनट के लिये 250 रूपये देने पड़ते .....इसलिये हम लोग बिना मंदिर के दर्शन किये ही बाहर आ गये।
यह तो बस आदमी की बनाई भेड़-चाल है ...वरना भगवान को धोती, सूट, टोपी, शेरवानी से क्या लेना देना। इसी तरह के पाखंड़ों की वजह से अब तो ऐसा लगने लग गया है कि मंदिरों पर भी धनाढ़्य वर्ग का वर्चस्व होता जा रहा है।
अच्छा, राम ..राम। वैसै गोपी फिल्म में राम चंद्र कह गये सिया से वाले गाने में भी बहुत पते की बातें इतने साल पहले ही कह दी गई हैं।

Tuesday, May 6, 2008

औरों को नसीहत, खुद बाबा फज़ीहत



आप बीबी कोकां.....मत्तां देंदी लोकां............आज के पेपर में भारतीय जनता पार्टी के राजनाथ जी ने कहा है कि राज ठाकरे जाति के आधार पर देश को बांट रहे हैं ....कोई उन से पूछे आगे जाति के आधार पर यहां क्या नहीं हो रहा है....जाति-वर्ग के आधार पर ही तो देश की क्या हालत हो रही है। सब से ज़्यादा तो मध्यम वर्ग के लोग ही इस के शिकार हो रहे हैं क्योंकि इतने इतने मेधावी छात्रों को सरकारी नौकरी नहीं मिल रही ...नौकरी की तो छोड़ो पहले इंजिनयर, डाक्टर आदि में दाखला ही नहीं मिल रहा जिस से बच्चों का हौंसला टूट जाता है।
सब जनता को मूर्ख बना रहे हैं...इन्हें तो अपनी अपनी कुर्सी की चिंता है...जब चुनाव आते हैं तो कोई न कोई ऐसी बात कर देते हैं कि जनता का ध्यान उधर ही लगा रहे ..वैसे सारे एक ही थैली के चट्टे-वट्टे हैं।
आज के पेपर में पढा़ कि चपरासी भी परिवार सहित अब हवाई-जहाज यात्रा करेंगे। जनता की कोई फिकर ही नहीं जो आधी जनता रात को भूखी सो जाती है।
मैं बिल्कुल सच आंखों देखी बात कर रही हूं...हम भुवनेश्वर गये...गाड़ी से उतरे...क्या देखा कि एक आदमी रेल लाइनों में प्लास्टिक के गिरे लिफाफे देख रहा था...एक लिफाफे में कुछ थोडे़ से भीगे चने थे वह उस ने खाये..लिफाफा इतना गंदा था कि देखने को मन नहीं करता था। वह बेचारा भी क्या करता आखीर पेट की अग्नि तो शांत करनी थी। आज भी जब वह सीन नज़र आता है आंखों में आंसू आ जाते हैं।

Sunday, April 13, 2008

पोते के हाथों दादी चढ़ी सूली!


कोल्हापुर की घटना ....जिस में कमरा अलग न मिलने के कारण दादी को पोते ने ही मार दिया...पढ़ कर बड़ा ही दुःख हुया। हमारी धार्मिक परंपराओ के अनेक नियम हैं जिस की सहायता से परिवार के सदस्य ठीक तरर से रहकर उन्नति कर सकते हैं। परिवार में जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे संस्कारोंके लिये वयोवृद्ध अर्थात् बड़े बुजुर्ग ही उत्तरदायी होते हैं। अगर बड़े बुजुर्गों का यही हाल रहा तो युवा पीडी़ अधर्ममय व्यसनों में पड़ कर देश समाज का सत्यानाश कर देगी, मैं तो कईं बार सोचती हूं कि इस के लिये शिक्षा-प्रणाली का ज़्यादा दोष है..हम लोग जब पढ़ते थे तो एक विषय अयोध्या कांड का होता था ...टीचर उस समय बीच बीच में कईं महापुरूषों की कथायें सुना दिया करते थे ( मैं स्टेट जम्मू-कश्मीर के मीरपुर जो आजकल पाकिस्तान में है से पढ़ी हुई हूं और वहीं से ही 1947 में मैंने मैट्रिक पास किया है। .....तब के संस्कार आज तक पड़े हुये हैं...जब तक सुबह रामायण-गीता या कोई और धार्मिक पुस्तक न पढ़ लूं तो ऐसे लगता है पता नहीं जैसे आज कुछ किया ही नहीं ।
संतोष चोपडा़