Friday, August 5, 2011

अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएं..

5 अगस्त की अखबार अमर उजाला के साथ रूपायन परिशिष्ट आता है ...उस में एक लडकी लिखती है बड़े दुःख भरी आप बीती कि मां की मौत के बाद मेरे बाप मेरे साथ बलात्कार निरंतर करता रहा है ...एक दो जिम्मेदार लोगों की शिकायत भी की परन्तु कुछ नहीं हुआ ...हार कर रूपायन ने उसे सलाह दी कि इस नंबर पर महिला आयोग को शिकायत करो।

उस लड़की की हिम्मत को दाद देती हूं जिस ने यह यह सब लिखा ...बहुत बार तो इस तरह के शोषण का शिकार महिलाएं शर्म की वजह से इस तरह की बातें संसार के सामने लाती ही नहीं हैं। अब तो आए दिन ऐसी बातें पढ़ने सुनने को मिलती हैं..दुःख होता है, पिता से बढ़ कर बच्चों की रक्षा कौन कर सकता है परंतु सारी त्रुटियां हमारी सरकार की ढीली चाल पर है ...क्यों नहीं कानून बनाती ऐसे लोगों को तो मौत या कम से कम उम्र कैद की सज़ा तो होनी ही चाहिए।

और महिला आयोग को ऐसे बच्चों की ऐसी कोई संस्था बनानी चाहिए जो ऐसे बच्चों की पूरा रक्षा करें..अगर घर में ही लड़कियां महफ़ूज़ नहीं तो बाहर वालों की बात ही छोड़े दो ...सरकार को लडऩे झगड़ने से ही फुरसत मिले तो जनता के बारे में सोचने का अवसर मिले, उन्हें तो अपनी कुर्सी चाहिए... उन का बस चले तो भगवान के पास भी कुर्सी पर बैठे बैठे ही जाएं। क्या मैं सही कह रही हूं ?