Friday, July 8, 2016

बात से बात निकली .....


हम लोग मीरपुर चौमक जो कि State J&K में था वहां रहते थे. आज पाकिस्तान ने वहां डेम बनाया हुआ है…मेरे दादा जी दादी जी मां बाप सभी वहां ही रहते थे..मेरे दादा जी की पहली पत्नी दो लड़के और एक लड़की छोड़ कर स्वर्ग सिधार गईं…एक लड़के का नाम श्री देवी दास जो कि मेरे पिता जी थे, दूसरे का श्री राम लाल और बुआ का नाम राज रानी था…जिस की जल्दी ही मृत्यु हो गई थी…वह जम्मू ही रहती थी, आज कल उन का एक बेटा जम्मू में ही रहता है ..

मेरी दूसरी दादी का नाम सोमावंती था…उन के चार लड़के और एक लड़की थी..देवकी नंदन, गोपाल दास, जगदीश और रोशन ..लड़की का नाम रक्षा था…जिस की शादी राजकुमार मल्होत्रा से हुई थी…देवकी नंदन, गोपाल, रक्षा तो अब दुनिया में नहीं हैं, जगदीश रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ में रहता है …डा रोशन अमेरिका में है…भगवान इन की लंबी लंबी उम्र करे …अब तो सभी भाई बहनों में यहीं हैं…भगवान इन्हें सदैव सुखी रखे….

मेरे दादा जी का मीरपुर में खूब लम्बा चौड़ा व्यापार था..खूब पैसा उन्होंने कमाया…वहां पर खूब ठाठ-बाठ के साथ रहते थे..घर में नौकर चाकर थे..चार पांच दुकानें थीं…दो मकान इतने खूबसूरत थे कि मैं कईं जगह घूम आई हूं परन्तु ऐसे मकान मैंने दो मंजिले कहीं नहीं देखे..मैं कईं बार सोचती हूं आज कल सारे अर्थात् मियां बीबी कमायें तो घर चलता है, पहले कमाई में कितनी बरकता होती थी!

दादा दादी इतने अच्छे थे कि मैं लिख नहीं सकती…दादी चाहे step थीं, परन्तु मुझे नहीं याद कि उन्होंने कभी हमें कुछ ऊंचा नीचा बोला हो। 

कहीं भी घूमने जाना तो सभी ने इक्ट्ठे ही जाना..मुझे पक्का याद है हम सभी दो बार वैष्णो देवी गये थे..पहले वहां पानी में लेट कर गुफ़ा पार करनी पड़ती थी..सभी बच्चे इक्ट्ठे खूब मौज मस्ती किया करते थे। 

दादा जी की बसें भी थीं..जिन का Permit श्रीनगर से बनता था..वहां भी सारे इक्ट्ठे ही गये…मेरी मां का नाम मेला देई था ..और चाची जी का नाम तारा वंती था…joint family में कुछ अपनी ही खूबियां होती हैं…कईं बार नोंक-झोंक घर में हो जाती थी तो कोई बात को पकड़ कर नहीं बैठता था…

दादा जी का खूब लम्बा चौड़ा business था, Commission agent थे…जिसे चलाने में वे खूब माहिर थे…कईं बार वह कहते थे अंग्रेज़ों को पैसा कमाना मैंने सिखाया है…परन्तु इतना कुछ होते हुए भी मैंने नहीं देखा कोई भी बच्चा उन के साथ प्यार से बैठा हो या बातें की हों…

सभी बच्चे पढ़ाई में खूब होश्यार थे.. नहीं पढ़ा तो गोपाल दास….क्योंकि उस का ध्यान ज़्यादा business की तरफ था…वह कहता था मेरे दादा जी को कि बसें मेरे नाम लगवाओ…वह नहीं माने तो वह रूठ कर बम्बई चला गया…

मुझे पक्का याद है घऱ में उदासी का माहौल था…दादी हर समय रोती रहती थीं..फिर कुछ दिनों बाद उस का पत्र आया तो दादा जी बम्बई जा कर उसे ले आये..

गोपाल स्वभाव का बड़ा मिलनसार था…कुछ भाग्य ने उस का साथ नहीं दिया.. mrs तो उन की सचमुच देवी ही थी…सब से बड़ा धक्का तो इकलोते बेटे के जाने से उन्हें लगा…राजू उस का नाम था। 

मैं एक बार अम्बाला अपनी मां के पास गई तो राजू आया हुआ था…मेरी मां कटहल की सब्जी बना रही थी ..मैंने कहा यह मेरे पिता जी खाते ही नहीं..वह कहने लगे राजू को पसन्द है…उस के लिए बनाई है …तुम्हारे पिता जी के लिेये मूंगी की दाल बनाई है ..सच बड़ा ही सुशील बच्चा था…दूसरे दिन मैंने अमृतसर जाना था…मेरे साथ स्टेशन तक आया …मुझे गाड़ी में बैठा कर वापस घर गया। 

मेरी मां का अपने देवरों के साथ खूब प्यार था…मुझे कभी कभी याद आता है मेरी मां और दादी ऐसे बात करती थीं जैसे सहेलियां हों…

लिखने को ढेर सी बातें हैं….समय मिला तो फिर कभी लिखूंगी …वैसे सभी को ऐसे ही मिलते जुलते देख कर, पढ़ कर खुशी हुई …सभी अपने अपने घरों में खुश रहें, यहीं शुभकामनाएं हैं…सभी को ढेरों प्यार….

मुझे मेरे स््कूल की प्रार्थना याद आ रही है इस समय ....

Wednesday, August 6, 2014

बच्चों के िदन भुला न देना....

आज मुझे याद आ रहा है कि किस शिद्दत से हम सब बच्चों को अपनी गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार रहता था। छुट्टियां होने से पहले ही हमारी मां हमारे कपड़े ठूंस ठूंस कर ट्रंक में भरने शुरू कर दिया करती थीं।

        मीरपुर का रघुनाथ मंदिर 
हम लोग मीरपुर में रहते थे (जो कि अब पीओएक -Pak Occupied Kashmir) में है। और छुट्टियों में ननिहाल जाना हमारा तय होता था। हम लोग पहले पैदल चल कर अड्डे पर जाया करते, वहां से लारी में बैठ कर पत्तन पहुंच जाते थे।

पतन में हम लोग एक बहुत बड़ी बेड़ी में बैठ कर झेहलम नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंच जाया करते थे। झेहलम दरिया पार करने पर हम लोग एक टांगे में बैठ कर झेहमल रेलवे स्टेशन पहुंच जाते......फिर वहां से रेल टिकट खरीद कर गाड़ी में बैठ कर जिला गुजरात पहुंचते। फिर स्टेशन से टांगा कर के हम लोग अपनी नानी की गोद में पेरोशाह गांव पहुंच जाते थे।

हमारी नानी, हमारी मासी और मामे हमें देख कर खुश हो जाया करते थे। उन्हें पता भी नहीं होता था कि हम ने आना है। मैं १९३०-४०के दशक की बातें आप को सुना रही हूं....तब यह मिनट मिनट और शायद पल पल की खबर देने वाले मोबाइलों का झंझट कहां था, इसलिए ज़िंदगी ज़्यादा सहज और आनंदमयी थी।

हां, तो नानी अपनी बड़ी ग्रेट थीं......मुझे अच्छे से याद है कि हमारी नानी से कोई चीज़ मांगने आता था और अगर वह चीज़ उस के पास नहीं हुआ करती थी तो वह उस मांगने आई औरत को घर में बिठा कर खुद वह चीज मांगने निकल जाया करती थीं और वह चीज़ का कहीं से भी जुगाड़ कर ही लौटा करती थीं।

हमारी नानी को पता तो रहता ही था कि अब गर्मी की छुट्टियां होने वाली हैं, इसलिए वह हमारे वहां पहुंचने से पहले ही चने, कुरमुरा आदि भुना कर, धानां (गेहूं की नई फसल आने पर उस के दानों को भून कर जब रखा जाता था).. गुड़ आदि बड़े बड़े मिट्टी के बर्तनों में डाल कर रख छोड़ती थीं और हम लोग खेलते-कूदते आते जाते उस में हाथ डाल कर उसे खाते थकते न थे।

और हमारी नानी के घर के बाहर पेड़ों पर हमें पींघे डाल दी जाती थीं जहां पर झूले लेते रहना हमें बेहद आनंद दिया करता था।

अरे, मेरी प्यारी नानी, मैं तुम्हारी वह प्यारी बात कैसे भूल गईं जब तुम हम सब के पास पांच-सात सूईंयां और धागे लेकर आ जाती और उन में धागा डालने को कहतीं.....लंबे लंबे धागे डाले जाने पर वह घर कि कच्ची दीवारों पर उन सूईंयों को टांग दिया करती थीं और अपनी ज़रूरत के अनुसार उन्हें इस्तेमाल कर लिया करती थीं। हमें शायद उस समय यह देख कर हंसी तो क्या, थोड़ा अजीब लगता था लेकिन जब अपनी आंखों ने जवाब देना शुरू किया --और अपने नाती-पोतों से यही काम करवाना शुरू किया तो नानी के सूईं-धागों का राज़ समझ में आ गया।

हां, वहां अपनी एक बाल विधवा मौसी भी तो थीं जो हमें खूब खाया पिलाया करती थीं और आते वक्त उस ने हमारे लिए घऱ ही में खताईयां (एक तरह के बिस्कुट- मैदा, सूजी, चीनी आदि मिला कर तैयार) तैयार कर के ...एक टीन को घर ही में एक भट्ठी पर रख कर उस पर खताईयां तैयार कर देती थीं।

हां, हम लोग वहां खूब मजा तो करते थे ....पूरे दो महीने......छुट्टियां शुरू होते ही जाना और खत्म होने पर लौट कर आना......लेकिन हम लोग अपने साथ अपना होमवर्क भी ज़रूर ले कर जाया करते थे। वहां हम रोज अपना होमवर्क भी किया करते थे ......जो कि खत्म होने का नाम ही नहीं लिया करता था.... लेकिन फिर भी हमें अपने टीचरों के डर से उसे तो पूरा करना ही पड़ता था क्योंकि वापिस लौटने पर हमारे होमवर्क की कापियां ज़रूर चैक हुआ करती थीं।

बस अभी आज के लिए इतना ही.......फिर कभी यादों के झरोखों से कुछ दिखेगा तो आप से शेयर करूंगी।

Monday, February 17, 2014

डा हेमलिन जैसी देवी को शत शत नमन्

आज सुबह मेरे बेटे ने दा हिंदु अंग्रेज़ी अखबार में एक लेखक की लिखी हुई खबर मुझे अपने ब्लॉग पर हिंदी में लिख कर पढ़ाई....एक ९० वर्षीय आस्ट्रेलियन महिला डाक्टर हैमलिन फिस्चुला के रोगियों का उपचार करती आ रही है और आज भी कर रही है..

हज़ारों महिलाएं एवं युवतियां ठीक हो गई हैं... इन में कईं ठीक हो कर दूसरे मरीज़ों के उपचार में सहयोग कर रही हैं।
सभी जानते हैं कि यह ऐसी बीमारी है जहां अपने भी नफ़रत करने लग जाते हैं। आज यह डाक्टर जो ९० वर्ष की उम्र पार चुकी है.. मैं जन्मदिन पर इन को हार्दिक शुभकामनाएं और मुबारक भेज रही हूं...

भगवान खुद नहीं आते लेकिन ऐसे फरिश्ते भेज देते हैं ... लेखक ने डाक्टर को देवी की उपाधि दी है........इस देवी को मेरा शत शत नमन्............

संतोष चोपड़ा.....

Wednesday, July 24, 2013

14 साल की बच्ची की हिम्मत ...

कल अमर उजाला अखबार में मैंने एक न्यूज़ पढ़ी कि किस तरह से एक १४ वर्ष की बच्ची ने हिम्मत की और अपने पिता के विरूद्ध थाने में जा पहुंची।

उसने कईं बार अपनी मां से कहा कि उसका पिता उस पर बुरी नज़र रखता है लेकिन मां हर बार उसे चुप रहने की ताकीद कर देती और बस बात आई गई हो जाती।

लेकिन बच्ची का साहस देखिए १४ वर्ष की उम्र में कि उसने ठान लिया कि पिता के विरूद्ध पुलिस में रिपोर्ट कर के ही दम लेगी।

थाने में रपट लिखाई गई, उस के पिता को बुलाया गया और एफआईआर दर्ज की गई।

भाग्य की विडंबना देखिए कि अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो कोई कहां जाए, जब खेत की बाड़ ही खेत को खाने लगे तो .....। मुझे आमिर खान के प्रोग्राम का भी ध्यान आ रहा है, उसने भी इस विषय पर जागृत करते हुए एक कार्यक्रम बनाया था।

कितनी बार बताया जाता है कि घरों में बच्चों के शोषण के लिए कोई जिम्मेदार घर का ही आदमी होता है लेकिन कोई साहस नहीं कर पाता, इसलिए यह गुनाह करने वाले का हौसला बुलंद होता रहता है।

काश इस देश की हर ऐसी बच्ची जो अपनों के ही हाथों इस तरह के शोषण का शिकार हो रही है, इतनी हिम्मत दिखाए ताकि इस तरह के शोषण पर नकेल कसी जा सके।

मुझे अभी अभी राज कपूर की प्रेम रोग फिल्म का ध्यान आ रहा है किस तरह से एक विधवा को उस के घर के मर्द ही नहीं छोड़ते............ हमारे समाज का काला चेहरा .... राजकपूर ने बखूबी दुनिया समाज के सामने रखा।
चलिए बच्चों से संबंधित एक सुंदर गीत लिखते हैं ....

यह पोस्ट लिखने में मेरे बेटे ने मेरी मदद की है, क्योंकि मेरे कंप्यूटर में हिंदी नहीं है --एक दो दिन लगेंगे ...
अच्छा जी , शुभरात्रि ...शब्बा खैर, रब राखा...

Wednesday, December 12, 2012

डी ए वी गर्ल्स कालेज में चल रहा कंप्यूटर साक्षरता कार्यक्रम



Aaj kal main dav college mein ek computer course kar rahi hoon.
Mujhe bahut achha laga. Main wahan roj jaati hoon. Kai baar der se bhi ho jaati hai.  
Vahan Jo teachers  Hum Ko Computer Sikhati Hain, weh Hum Ko Bahut sneh ke Saath Sikhati hain. Weh hamara poora dhyan bhi rakhti hain.  
GOD Bless Them
Very Very Sweet Girls.    

Friday, August 5, 2011

अगर रक्षक ही भक्षक बन जाएं..

5 अगस्त की अखबार अमर उजाला के साथ रूपायन परिशिष्ट आता है ...उस में एक लडकी लिखती है बड़े दुःख भरी आप बीती कि मां की मौत के बाद मेरे बाप मेरे साथ बलात्कार निरंतर करता रहा है ...एक दो जिम्मेदार लोगों की शिकायत भी की परन्तु कुछ नहीं हुआ ...हार कर रूपायन ने उसे सलाह दी कि इस नंबर पर महिला आयोग को शिकायत करो।

उस लड़की की हिम्मत को दाद देती हूं जिस ने यह यह सब लिखा ...बहुत बार तो इस तरह के शोषण का शिकार महिलाएं शर्म की वजह से इस तरह की बातें संसार के सामने लाती ही नहीं हैं। अब तो आए दिन ऐसी बातें पढ़ने सुनने को मिलती हैं..दुःख होता है, पिता से बढ़ कर बच्चों की रक्षा कौन कर सकता है परंतु सारी त्रुटियां हमारी सरकार की ढीली चाल पर है ...क्यों नहीं कानून बनाती ऐसे लोगों को तो मौत या कम से कम उम्र कैद की सज़ा तो होनी ही चाहिए।

और महिला आयोग को ऐसे बच्चों की ऐसी कोई संस्था बनानी चाहिए जो ऐसे बच्चों की पूरा रक्षा करें..अगर घर में ही लड़कियां महफ़ूज़ नहीं तो बाहर वालों की बात ही छोड़े दो ...सरकार को लडऩे झगड़ने से ही फुरसत मिले तो जनता के बारे में सोचने का अवसर मिले, उन्हें तो अपनी कुर्सी चाहिए... उन का बस चले तो भगवान के पास भी कुर्सी पर बैठे बैठे ही जाएं। क्या मैं सही कह रही हूं ?

Friday, September 12, 2008

राम चंद्र कह गये सिया से ...

कल टीवी पर बम्बई की एक महिला को देखा जो गणपति जी के दर्शन के लिये गई । पुजारी कैसे धक्का-मुक्की कर के उसे मंदिर से बाहर निकाल रहे थे....क्योंकि वह शिल्पा शेट्टी और एकता कपूर जैसे लोगों को दर्शन करवाने में व्यस्त थे। आज कल सभी जगह पैसे की जय जय कार है....कईं जगह पर तो पुजारियों ने तो मंदिर जैसी जगह को भी अपनी स्टेट ही मान रखा है।
मैं अपनी बात बताती हूं...हम लोग साउथ में वैसे ही घूमने फिरने के लिये गये ...वहां एक मंदिर में हम गये तो गेट पर ही पुजारियों के पहरेदारों ने हमें रोक दिया ...कहने लगे इन कपड़ों में आप अंदर नहीं जा सकते। चूंकि हम लोग पंजाबी हैं और पंजाबी सूट पहन रखे थे.....हम ने कहा तो फिर वह कहने लगा कि आप को धोती पहन कर मंदिर के अंदर जाना होगा जो वहां पर 50 रूपये किराये पर मिल रही थी। हम को घर के पांच सदस्यों के लिये 10 मिनट के लिये 250 रूपये देने पड़ते .....इसलिये हम लोग बिना मंदिर के दर्शन किये ही बाहर आ गये।
यह तो बस आदमी की बनाई भेड़-चाल है ...वरना भगवान को धोती, सूट, टोपी, शेरवानी से क्या लेना देना। इसी तरह के पाखंड़ों की वजह से अब तो ऐसा लगने लग गया है कि मंदिरों पर भी धनाढ़्य वर्ग का वर्चस्व होता जा रहा है।
अच्छा, राम ..राम। वैसै गोपी फिल्म में राम चंद्र कह गये सिया से वाले गाने में भी बहुत पते की बातें इतने साल पहले ही कह दी गई हैं।