हम लोग मीरपुर चौमक जो कि State J&K में था वहां रहते थे. आज पाकिस्तान ने वहां डेम बनाया हुआ है…मेरे दादा जी दादी जी मां बाप सभी वहां ही रहते थे..मेरे दादा जी की पहली पत्नी दो लड़के और एक लड़की छोड़ कर स्वर्ग सिधार गईं…एक लड़के का नाम श्री देवी दास जो कि मेरे पिता जी थे, दूसरे का श्री राम लाल और बुआ का नाम राज रानी था…जिस की जल्दी ही मृत्यु हो गई थी…वह जम्मू ही रहती थी, आज कल उन का एक बेटा जम्मू में ही रहता है ..
मेरी दूसरी दादी का नाम सोमावंती था…उन के चार लड़के और एक लड़की थी..देवकी नंदन, गोपाल दास, जगदीश और रोशन ..लड़की का नाम रक्षा था…जिस की शादी राजकुमार मल्होत्रा से हुई थी…देवकी नंदन, गोपाल, रक्षा तो अब दुनिया में नहीं हैं, जगदीश रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ में रहता है …डा रोशन अमेरिका में है…भगवान इन की लंबी लंबी उम्र करे …अब तो सभी भाई बहनों में यहीं हैं…भगवान इन्हें सदैव सुखी रखे….
मेरे दादा जी का मीरपुर में खूब लम्बा चौड़ा व्यापार था..खूब पैसा उन्होंने कमाया…वहां पर खूब ठाठ-बाठ के साथ रहते थे..घर में नौकर चाकर थे..चार पांच दुकानें थीं…दो मकान इतने खूबसूरत थे कि मैं कईं जगह घूम आई हूं परन्तु ऐसे मकान मैंने दो मंजिले कहीं नहीं देखे..मैं कईं बार सोचती हूं आज कल सारे अर्थात् मियां बीबी कमायें तो घर चलता है, पहले कमाई में कितनी बरकता होती थी!
दादा दादी इतने अच्छे थे कि मैं लिख नहीं सकती…दादी चाहे step थीं, परन्तु मुझे नहीं याद कि उन्होंने कभी हमें कुछ ऊंचा नीचा बोला हो।
कहीं भी घूमने जाना तो सभी ने इक्ट्ठे ही जाना..मुझे पक्का याद है हम सभी दो बार वैष्णो देवी गये थे..पहले वहां पानी में लेट कर गुफ़ा पार करनी पड़ती थी..सभी बच्चे इक्ट्ठे खूब मौज मस्ती किया करते थे।
दादा जी की बसें भी थीं..जिन का Permit श्रीनगर से बनता था..वहां भी सारे इक्ट्ठे ही गये…मेरी मां का नाम मेला देई था ..और चाची जी का नाम तारा वंती था…joint family में कुछ अपनी ही खूबियां होती हैं…कईं बार नोंक-झोंक घर में हो जाती थी तो कोई बात को पकड़ कर नहीं बैठता था…
दादा जी का खूब लम्बा चौड़ा business था, Commission agent थे…जिसे चलाने में वे खूब माहिर थे…कईं बार वह कहते थे अंग्रेज़ों को पैसा कमाना मैंने सिखाया है…परन्तु इतना कुछ होते हुए भी मैंने नहीं देखा कोई भी बच्चा उन के साथ प्यार से बैठा हो या बातें की हों…
सभी बच्चे पढ़ाई में खूब होश्यार थे.. नहीं पढ़ा तो गोपाल दास….क्योंकि उस का ध्यान ज़्यादा business की तरफ था…वह कहता था मेरे दादा जी को कि बसें मेरे नाम लगवाओ…वह नहीं माने तो वह रूठ कर बम्बई चला गया…
मुझे पक्का याद है घऱ में उदासी का माहौल था…दादी हर समय रोती रहती थीं..फिर कुछ दिनों बाद उस का पत्र आया तो दादा जी बम्बई जा कर उसे ले आये..
गोपाल स्वभाव का बड़ा मिलनसार था…कुछ भाग्य ने उस का साथ नहीं दिया.. mrs तो उन की सचमुच देवी ही थी…सब से बड़ा धक्का तो इकलोते बेटे के जाने से उन्हें लगा…राजू उस का नाम था।
मैं एक बार अम्बाला अपनी मां के पास गई तो राजू आया हुआ था…मेरी मां कटहल की सब्जी बना रही थी ..मैंने कहा यह मेरे पिता जी खाते ही नहीं..वह कहने लगे राजू को पसन्द है…उस के लिए बनाई है …तुम्हारे पिता जी के लिेये मूंगी की दाल बनाई है ..सच बड़ा ही सुशील बच्चा था…दूसरे दिन मैंने अमृतसर जाना था…मेरे साथ स्टेशन तक आया …मुझे गाड़ी में बैठा कर वापस घर गया।
मेरी मां का अपने देवरों के साथ खूब प्यार था…मुझे कभी कभी याद आता है मेरी मां और दादी ऐसे बात करती थीं जैसे सहेलियां हों…
लिखने को ढेर सी बातें हैं….समय मिला तो फिर कभी लिखूंगी …वैसे सभी को ऐसे ही मिलते जुलते देख कर, पढ़ कर खुशी हुई …सभी अपने अपने घरों में खुश रहें, यहीं शुभकामनाएं हैं…सभी को ढेरों प्यार….
मुझे मेरे स््कूल की प्रार्थना याद आ रही है इस समय ....
मुझे मेरे स््कूल की प्रार्थना याद आ रही है इस समय ....